Tuesday, 27 November 2012

पिछले कुछ महीने की नरमी के बाद महंगाई ने एक बार फिर सिर उठाया है और फरवरी में यह बढ़कर 6.95 फीसदी पर पहुंच गई जबकि जनवरी में महंगाई की दर 6.55 फीसदी थी। लेकिन इन आंकड़ों पर विस्तार से नजर डालने के बाद आरबीआई को नीतिगत दरों में कटौती की बाबत दुविधा के संकेत मिल सकते हैं, जो गुरुवार को मौद्रित नीति की समीक्षा करेगा।
गुरुवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, एक ओर जहां खाद्य महंगाई महज एक महीने की अवधि में 6 फीसदी से ज्यादा बढ़ी, वहीं विनिर्मित उत्पादों की कीमतें फरवरी में गिरकर 5.75 फीसदी पर आ गई। जनवरी में यह 6.49 फीसदी थी। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मौद्रिक नीति ज्यादातर विनिर्मित उत्पादों की महंगाई के हिसाब से चलती है, लेकिन खाद्य महंगाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने स्वीकार किया कि महंगाई का दबाव है, लेकिन उन्हें भरोसा है कि वित्त वर्ष के आखिर में कीमतों में बढ़ोतरी 6.5 फीसदी के आसपास रहेगी। ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि विनिर्मित उत्पादों की महंगाई नीचे आई है, लिहाजा आरबीआई को नीतिगत दरों में कटौती से हिचकिचाना नहीं चाहिए। हालांकि फरवरी में गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पादों की महंगाई घटी है। आईसीआरए की अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा - ऐसे हालात में कच्चे तेल की ऊंची कीमतें महंगाई पर दबाव बढ़ा रही है, जो चिंता की बात है। ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि आरबीआई रीपो दरों को अपरिवर्तित रखेगा।www.janaahar.com
एक अन्य विशेषज्ञ का मानना है कि महंगाई के ताजा आंकड़े आरबीआई को नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखने को प्रोत्साहित कर सकते हैं, बावजूद इसके कि आर्थिक विकास दर और नीचे आने की संभावना है।
कासा ग्रुप के निदेशक सिद्धार्थ शंकर ने कहा - खाद्य महंगाई में बढ़त जारी रहेगी और इसके साथ ही र्ईंधन की महंगाई भी। इस साल की तीसरी तिमाही में खाद्य कीमतें नरम होंगी, पर मुझे उम्मीद है कि ईंधन की महंगाई तेजी से बढ़ेगी। खाने-पीने की बदलती आदतों के चलते महंगाई बढ़ रही है और वित्तीय कदम भी इसे नहीं रोक सकते।

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